राधा की बस्ती मे शोर तो देखो
भीङ कितनी है चारो और तो देखो
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उस घर के बाहर एक बङा दायरा जमा है
लगता है आज राधा के घर मायरा जमा है
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पर भीङ छँटके जब मै राधा तक पहुँचा
जमीन हिल गई, आँखो को यकीन ना हुआ
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कल तक जो गाल और हौठ
मुस्कान जङे थे
आज उनपे जख्मी निशान पङे थे
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हमने तो चेहरे, जुल्फो मे उसकी खुबसुरती देखी थी
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आज भीङ मे वो बिल्कुल नग्न पङी थी
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जो नजरो मे शरमाती थी
आज बेशरम पङी है
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गर्मी उसकी आगोश मे
वो नरम पङी है
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बीती रात को आए थे घर, चंद लुटेरे
पार कर गये मर्यादा नाम के डेरे
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अपनी हवस मे बेचारी को तहस नहस कर दिया
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मार डाला या मरने पर बेबस कर दिया
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और बाप गया शहर
उसे अभी खबर नही है
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वो रोटी जुटा रहा, अभी ईज्जत का ङर नही है
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फिर आया घर तो देखा, नजारा बदल गया
.जानी हकीकत तो उसका भी दिल दहल गया
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ले बेटी को गोद मे चार पहर रोता रहा
फिर आहिस्ते आहिस्ते होश भी खोता रहा
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और भाई अब तक चुप था, खून उसका खौल उठा
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गुर्राया, थर्राया फिर हुँकार भरके बोल उठा
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जिसने लुटा मेरी बहन को,
कहो क्या नाम है उस चोर का
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जिस्म छलनी करके रख दुँगा हरामखोर का
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भनक बङे घर के लोगो तक भी पहुँची हुँकार की
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आवाज उनके कानो मे आई जब ललकार की
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बदुँके लेके शान से, आये राधा की बस्ती मे
मुँछो पर ताव दिया फिर आदतन मस्ती मे
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बोला ठाकुर आगे आके, किसमे इतना जोर है
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जो शेर बनना चाहता है
ठाकुरो के दौर मे
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ईज्जत तुम्हारी है नही तो लुटने की बात क्या
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ठाकुरो से उलझने की किसी की औकात क्या
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बेटी बङी हो जाएँ तो ससुराल को भेज दो
वरना कीमत माँगके ठाकुरो को बेच दो
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वो नौजवान, पत्थर लेके आया आगे दौङके
चिल्लाया ठाकुर की गाङी का शीशा तोङके
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कि अगर तुम्हारे लहु मे उबाल ज्यादा है
तो लो मेरा लहु भी बदला लेने पे आमादा है
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इतना कहकर ठाकुर की गर्दन दीवार पर टाँग दी
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ठाकुर के आदमियो ने बँदुके उसपर तान दी
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हवा मे आवाज आई, माहौल युँ सन्ना गया
धीरे धीरे लाल लहु पूरी जमी पे छा गया
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वो पङा नौजवान ऊधर,
सिर धरती मे धँसता हुआ
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उधर ठाकुर बैठा है,
ठहाके से हँसता हुआ
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इस तरह से कितने नौजवान रोज मरते है
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कितने रईस रोज राधा का जिस्म छलते है
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अमीरो के राज मे
जिन्दगी कितनी सस्ती है
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देखना है तो आओ कभी
राधा की बस्ती मे