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Thursday, December 26, 2013

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Man Se Jab Pida Rudh Gae

मन से जब पीड़ा रूठ गई लिखने की आदत छूट गई
कवि बनने की अभिलाषा थी वो घीरे धीरे टूट गई
मन बोझिल सा हो जाता है जब शाम सुहानी लगती है
क्योंकि तब लिखने की खातिर फिर कलम उठानी पड़ती है |
मन को कितना ही समझाया यूँ नहीं शरारत करते हैं
क्यों कहते थे पहले तुम 'हम कविताई का दम भरते हैं'
हम राह बचाकर चलते हैं कोई हिस्सा ना मिल जाए
मन का खोया सपनीला सा कोई किस्सा ना मिल जाए
हम जानबूझकर कहते हैं बदनाम कहानी लगती है
क्योंकि तब लिखने की खातिर फिर कलम उठानी पड़ती है

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