जीवन की भाग-दौड़ में -
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है।
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम
और
आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है!!
कितने दूर निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते
लोग कहते है हम मुश्कुराते बहोत है ,
और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते
"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह
करता हूँ.
मालूम हे कोई मोल नहीं मेरा.....
फिर भी,
कुछ अनमोल लोगो से
रिश्ता रखता हूँ......!
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