तुम्हारी जुल्फ़ों का पता घटाओं को दे दूं क्या
जाने कब से इस शहर में नहीं बरसात हुई
पूरे गांव में गूंजती होगी तेरी पायल की झनक
खत मिला तो मगर न तुझ से कोई बात हुई
दिन गुजरता ही नहीं, रात है कि जाती ही नहीं
तेरे बिन यह घर भी मेरे लिये तो हवालात हुई
नींद आती नहीं याद आते हैं वो मंजर मुझ को
जब हम दोनों की छुपकर अकेले में मुलाकात हुई
अपने दिल को जल्दी मिलने की आस दे दूँ क्या
इस खलिश इस आरजू को "प्यास" कह दूँ क्या
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