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Sunday, February 2, 2014

चाँद को अब

चाँद को अब अपना आफ़ताब बना रहें है हम..
कि तूझसे दूरियों की कौल यूँ निभा रहें है हम..

अब और क्या कहे तेरी निगाहों के सवाल पे..
बस ऐसे मोहब्बत अपनी जता रहे हैं हम..!!

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