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Wednesday, January 1, 2014

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Aaj Phir Dubne ka Arma Hai Jaam

आज फिर डूबने का अरमां है जाम लबालब करा दे साकी ....
ग़मों के दरिया से बचते - बचाते गुजरा हूँ पिला दे इतना के अब होश रहे न साकी ...
खूब अपनों ने कहर ढाया है कोई कसर रखी ना बाकी ...
तेरा दस्तूर जुदा है सबसे तू प्यार से गले लगा साकी.

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