Sunday, August 31, 2014
Friday, August 29, 2014
Thursday, August 28, 2014
Sunday, August 24, 2014
Saturday, August 23, 2014
Friday, August 22, 2014
Thursday, August 21, 2014
Wednesday, August 20, 2014
Tuesday, August 19, 2014
Monday, August 18, 2014
kitni mohabat he tumse,,,
Kabsse kehne ki himmat juta raha hu,
Ki tumse mohhbat he kitni- Jane aaj aesa kya hua ki dil ne kaha keh hi dalu.
Jab kitab ke panno ki safedi tumhare 6ehre par 6amakati he,
Dil ruk sa jata he. Jab hasi ki ek thandi laher mere kano tak ati he,
Vakt tham sa jata he. Jane aaj aesa kya hua dil ne kaha keh hi dalu –
kitni mohabat he tumse,
kitni mohabat he tumse,,,
Ki tumse mohhbat he kitni- Jane aaj aesa kya hua ki dil ne kaha keh hi dalu.
Jab kitab ke panno ki safedi tumhare 6ehre par 6amakati he,
Dil ruk sa jata he. Jab hasi ki ek thandi laher mere kano tak ati he,
Vakt tham sa jata he. Jane aaj aesa kya hua dil ne kaha keh hi dalu –
kitni mohabat he tumse,
kitni mohabat he tumse,,,
Saturday, August 16, 2014
Friday, August 15, 2014
Thursday, August 14, 2014
Wednesday, August 13, 2014
Tuesday, August 12, 2014
Monday, August 11, 2014
Friday, August 1, 2014
Khud ko jane Kab na jane wo din aayega
हम बैठे थे युहीं अकेले एक दिन
तभी अचानक एक ख्याल आया
की तू औरत न होती तो क्या होती
क्या फिर तेरी जिंदगी कुछ अलग होती
इससे अच्छी होती या इससे बुरी होती…………
क्या तब भी जीवन में इतने कर्तव्य होते
जिंदगी के हर बंधन में यूँ ही जकड़ी होती
अपनी सोच को दबाकर यूँ दुसरो का ख्याल
रखती
हर एक पल यूँ जीवन से समझौता करती…………………
इतना सहती इतना करती फिर भी चुप रहती
यूँ सीमाओं में बंधी रहती या फिर
पंछी सी आजाद होती
हर वक़्त एक बंदिश का अहसास होता या फिर
खुद को किसी भी बंधन में बंधने ना देती
फिर भी अपनी हर सोच हर सपने
को साकारकरती ………..
क्या फिर भी यूँही एक दिन ख्याल आता
क्या फिर भी मेरा वजूद इतना धुंधला पाता
क्या तब भी मैं अपने को यूँही तनहा पाती
क्या तब भी दिल में यूँही दर्द का आभास होता
क्या तब भी मेरी पहचान यूँ गुमशुदा सी होती
शायद नहीं…….. , नहीं……….., कभी नहीं …………….
मैं खुद से ही प्रशन करती हूँ
खुद की ही पहचान तलाशती हूँ
खुद का ही अस्तित्व पाने की कोशिश करती हूँ
क्या मैं कुछ गलत करती हूँ
क्या मुझे अपने ही बारे में जानने का कोई हक
नहीं है
क्या मुझे खुद को जानने के लिए
भी अबदूसरों की जरुरत है
जब मैं अपने दर्द से झूझती हूँ तो कोई अपना नज़र
नहीं आता
वर्ना तो रिश्ते नाते निभाते निभाते खुद
का भी ख्याल नहीं आता…………..
न जाने कब वो दिन आएगा
जब मैं खुद को जानूंगी खुद को पहचानूंगी
खुद का अस्तित्व ढूंढ़ पाऊँगी
तब मेरी भी एक पहचान होगी
कब कब कब न जाने वो दिन आयेगा………………..
तभी अचानक एक ख्याल आया
की तू औरत न होती तो क्या होती
क्या फिर तेरी जिंदगी कुछ अलग होती
इससे अच्छी होती या इससे बुरी होती…………
क्या तब भी जीवन में इतने कर्तव्य होते
जिंदगी के हर बंधन में यूँ ही जकड़ी होती
अपनी सोच को दबाकर यूँ दुसरो का ख्याल
रखती
हर एक पल यूँ जीवन से समझौता करती…………………
इतना सहती इतना करती फिर भी चुप रहती
यूँ सीमाओं में बंधी रहती या फिर
पंछी सी आजाद होती
हर वक़्त एक बंदिश का अहसास होता या फिर
खुद को किसी भी बंधन में बंधने ना देती
फिर भी अपनी हर सोच हर सपने
को साकारकरती ………..
क्या फिर भी यूँही एक दिन ख्याल आता
क्या फिर भी मेरा वजूद इतना धुंधला पाता
क्या तब भी मैं अपने को यूँही तनहा पाती
क्या तब भी दिल में यूँही दर्द का आभास होता
क्या तब भी मेरी पहचान यूँ गुमशुदा सी होती
शायद नहीं…….. , नहीं……….., कभी नहीं …………….
मैं खुद से ही प्रशन करती हूँ
खुद की ही पहचान तलाशती हूँ
खुद का ही अस्तित्व पाने की कोशिश करती हूँ
क्या मैं कुछ गलत करती हूँ
क्या मुझे अपने ही बारे में जानने का कोई हक
नहीं है
क्या मुझे खुद को जानने के लिए
भी अबदूसरों की जरुरत है
जब मैं अपने दर्द से झूझती हूँ तो कोई अपना नज़र
नहीं आता
वर्ना तो रिश्ते नाते निभाते निभाते खुद
का भी ख्याल नहीं आता…………..
न जाने कब वो दिन आएगा
जब मैं खुद को जानूंगी खुद को पहचानूंगी
खुद का अस्तित्व ढूंढ़ पाऊँगी
तब मेरी भी एक पहचान होगी
कब कब कब न जाने वो दिन आयेगा………………..
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